खुल कर बोलना हो तो हिन्दी क्यो

खुशी ने जैसा कहा- अगर हमें खुल कर अपनी बात और सहजता से अपनी बात कहनी हो, तो हिन्दी क्यों नहीं?

क्या हम इस फ़ोरम में हिन्दी का प्रयोग कर सकते हैं, यदि हम अंग्रेजी में उतने सहज न हों? करना कहां तक ठीक है? विचार दें.

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Anoop Zombie
Anoop Zombie
from Bangalore
15 years ago

Iskeliyae Bharath main sabhi log hindi main business aur baath cheet karna hai .. abhi sabhi business angrazi main hai.. toh hum kya karain? IndiBlogger ka forum main ek naya hindi blogging feature development main hai ..

yea hamareliya bhi priority hai..

अनूप जी सभी लोग भारत में  व्यवसाय और बातचीत अंग्रेजी में भी तो नहीं करते हैं, फिर अंग्रेजी के प्रति यह मोह क्यों?

इंडीब्लोगर में नया हिंदी फीचर आप तैयार कर रहे हैं, इसके लिए शुभ कामनाएं। आशा है कि आप जल्द इसमें कामयाब होंगे।

thanks Anoop and Khushi to continue the discussion.

 

हिमांशू जी, इस साइट पर मैं नया हूं, पर शुरू से बिना हिचक हिंदी में ही अपनी बात रखत रहा हूं। कई लोगों ने मुझे हिंदी में जवाब भी दिए हैं। इसलिए तकनीकी दृष्टि से हिंदी में पोस्ट करने में कोई अड़चन नहीं दिखता।

हां जो लोग हिंदी न जानते हों, वे अवश्य अन्य भाषाओं में पोस्ट करें। लेकिन संवाद बढ़ाने के लिए हिंदी में पोस्ट रहे तो सुविधा रहेगी, क्योंकि यही भाषा ऐसी है, जिसे लोग देश भर में थोड़ा-बहुत समझते हैं।

ऊपर अनूप जी ने हिंदी के लिए एक खास सहूलियत की भी बात की है, यह निश्चय ही उपयोगी साबित होगा, हालांकि अभी ठीक से पता नहीं चल पाया है कि वह क्या है। क्या अनूप जी स्पष्ट करेंगे?

आपने यह बात सही कही कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जिसे पूरे देश में लोग थोड़ा-बहुत समझते हैं । और जैसा आपने कहा कि अब तकनीकी दिक्कते भी उतनी नहीं रह गयीं, तो हिन्दी में संवाद किया जा सकता है इण्टरनेट पर ।  आशा है, अनूप जी यहाँ हिन्दी की सहूलियत के लिये उठाये गये कदमों का जिक्र करेंगे ।

हिमांशूजी, क्या आपको पता है, अब तो डोमेन नाम तक हिंदी में हो सकते हैं। जैसे, आपका डोमेन नाम www.हिमांशू.com हो सकता है। यह बात मुझे संजय बैंगाणी के तरकश वाले ब्लोग के एक पोस्ट से मालूम हुई।

अब इंटरनेट में भाषा के मामले में कोई बंदिश नहीं रह गई है।

एकदम से नहीं जानता था कि अब डोमेन नाम भी हिन्दी में हो सकते हैं । शायद मैंने ’तरकश’ की वह पोस्ट नहीं पढ़ी । धन्यवाद ।

SVD
from Mumbai
14 years ago

aree wah... ye acchi jankari di apane...  aap hame link denge to hum padh sake ki kaise aissa ho sakta hai..

खुशी जी यह रहा <a href="http://www.tarakash.com/">तरकश ब्लोग </a>के उस पोस्ट का पता जिसमें हिंदी में डोमेन नाम दर्ज कराने के बारे में जानकारी दी गई है:-

http://www.tarakash.com/Internet/domain-booking-in-Indic-languages.html

Hari Joshi
Hari Joshi
from Meerut
14 years ago

मैं हिंदी से बेहतर किसी अन्‍य भाषा में स्‍वयं को अभिव्‍यक्‍त नहीं कर सकता। इसलिए अंग्रेजी ब्‍लाग्‍ास् पर भी मैं हिंदी में प्रतिक्रिया देने में नहीं झिझकता। लेकिन मैं ऐसा तभी करता हूं जब मुझे लगता है कि सामने वाला हिंदी समझ सकता है। अगर आप और हम हिंदी में ब्‍लागिंग करते हैं तो फिर झिझक क्‍यों।

ऋचा जोशी की कविता की पंक्ति है- भाषा एक पुल है तुम तक पंहुचने के लिए...और हिंदी भारतवासियों तक पंहुचने का सबसे बड़ा पुल हिंदी ही है।

धन्यवाद हरि जी । हिंदी पूरा भारत कमोबेश समझता ही है ।

हरि जी, एक बात मैं आपसे पूछना चाहता हूं, यदि ठीक लगे तो उत्तर दीजिएगा।

मैंने आपके ब्लोग (इर्द-गिर्द) के पन्नों में नौकरी.कोम, सिंबयोसिस, आदि के विज्ञापन देखे। ये कैसे आते हैं? क्या आपने इनसे सीधे संपर्क करके ये विज्ञापन प्राप्त किए, या किसी अन्य रीति से?

क्या इन विज्ञापनों से आपको कोई आमदनी होती है?

SVD
from Mumbai
14 years ago

sahi kaha aapne.. mai bhi hindi mai khul ke baat kar sakti hu.aasni rahti hai apni baat samjane mai. kintu, meri hindi aap log jitni shuddha nahi hai thodi mixing hai . par accha lagta hai yaha hindhibhashi logo se milkar

Hari Joshi
from Meerut
14 years ago

बालसुब्रमण्‍यम जी,

ये विज्ञापन हिंद युग्‍म के सौजन्‍य से हैं। शैलेश भारतवासी के अकाउंट से मेरे ब्‍लाग पर एक्‍टीवेट हैं। कोमिली एड सर्विस से प्राप्‍त हैं। इनके भुगतान संबंधी शर्तें मैने कभी शैलेश से पूछी नहीं लेकिन इतना पता है कि बहुत कम भुगतान वाले विज्ञापन हैं ये। अधिक जानकारी के लिए आप शैलेश से hindyugm@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। नि:संकोच।

यह जानकारी देने के लिए बहुत आभार। मैं शैलेश जी से जरूर संपर्क करूंगा।

Rajnish Kumar
Rajnish Kumar
from Bangalore
14 years ago

Me and Mr bala subramanyam have had enough discussion on this on my mUlayam Hindi ban post.

Something just striked me yesterday while I was driving down from secunderabad to Hitech city a distance of good 30 kms in Hyderabad.There were hundreds of hoardings and signs that I paased.Almost 95 % of them were in English.A lot of people know and speak Hindi in Hyderabad and almost everyone knows Telugu.Then Why English ?I am just asking everyone to have a realist view of life.

It gave a lot of support to my conviction that words are just a medium,it's the thought which counts.

Hyderabd being a metropolitan city with people from all over the country even the whole world coming in. English Billboards and Signs are more about convenience of communication than about anything else.No leader has in the past supported English whether it is Kamraj in Tamilnadu or Mulayam in UP.All they have done is to use it as another divisive force.But still it has thrived why ? Only because it helps people connect.You may call it a vestige of our colonial past but the reality is that it has been there and it will be there till we find a better means of linking up.Having lived in different parts of the country I understand the importance of a common link that binds everyone regardless of caste,color,religion or faith.Fortunately or unfortunately English IS that link.

Try taking an auto rickshaw in Chennai next time and you will know what I mean.

 

Hari Joshi
from Meerut
14 years ago

रजनीश जी,

हैदराबाद या बैंगलौर में यदि मुझे अपना कोई प्रोडेक्‍ट बेचना होगा तो मैं भी अंग्रेजी को ही प्राथमिकता दूंगा। माल बेचने के लिए विज्ञापन की भाषा वहां अंग्रेजी ही होगी क्‍योंकि बाजार और उसके नियम टारगेट क्‍लाइंट को ही सर्वोच्‍च प्राथमिकता देते हैं लेकिन मेट्रो के अलावा छोटे और मझोले शहरों में ये भाषा बदल जाती है। वहां टारगेट क्‍लाइंट के मुताबिक हिंदी, बांग्‍ला, तमिल, तेलगू, मलयाली या पंजाबी में इश्तिहार होते हैं।

मेरा मानना है कि जिस भाषा में आप अपने को अभिव्‍यक्‍त और दूसरे को आत्‍मसात कर सकें  (वह मातृभाषा ही हो सकती है) वही अभिव्‍यक्ति का सबसे अच्‍छा पुल है।

मित्रो, रजनीश जी ने उनके और मेरे बीच जिस चर्चा का जिक्र किया है, यदि उसे पढ़ना हो, तो रजनीश जी के ब्लोग अहंग में यहां पधारें:-

http://aahang.wordpress.com/2009/04/15/poverty-and-power-in-india/#comment-237

हरि जोशी जी, आपका यह तर्क अजीब लगा कि हैदराबाद या बैंगलूर में आप अंग्रेजी में सामान बेचेंगे।

वहां की भाषा तो तेलगू और कन्नड है। फिर आप अंग्रेजी में क्योंकर वहां सामान बेचेंगे? रजनीश ने भी कहा है कि इन दोनों ही जगहों में हिंदी खूब समझी जाती है। इसलिए यदि आप तेलगू-कन्नड के साथ हिंदी में भी विज्ञापन देते, खासकर रेडियो-टीवी में, तो आपका सामान ज्यादा बिकता।

अंग्रेजी में सामान बेचकर तो आपका धंधा बैठ ही जाएगा! इसलिए जरा सावधान रहिए!

 

Hari Joshi
from Meerut
14 years ago

बालसुब्रमण्‍यम जी,

मैं अपनी नहीं कॉरपोरेट कल्‍चर की बात कर रहा था। मैने कहा था कि अगर मेट्रो में सामान बेचना हो तो टारगेट क्‍लाइंट अंग्रेजी में ढूंढा जाता है क्‍योंकि कॉरपोरेट की धारणा है कि ऐसे क्‍लाइंट की जेब भारी होती है। जबकि मेट्रो के बाहर हिंदी या तेलगु टारगेट क्‍लाइंट की भाषा हो जाती है।

आशा है मेरी बात स्‍पष्‍ट हो गई होगी।

हरि जी, बात पहले भी स्पष्ट ही थी। मैंने जब कहा कि आप अपने सामान बेच रहे हैं, तो मेरा यह मतलब नहीं था आप व्यक्तिगत रूप से वहां (बैंगलूर-हैदराबाद) जाकर चीजें बेच रहे हैं। बल्कि आपके द्वारा मेट्रो में अंग्रेजी के जिरिए (कोरपेरेट द्वारा ही) सामान बेचने का पक्ष लेने पर टिप्पणी कर रहा था।

मैं कह रहा था कि मेट्रो में भी सब लोग अंग्रेजी नहीं बोलते हैं, मात्र 10-20 प्रतिशत ही टूटी-फूटी अंग्रेजी बोल लेते हैं। यदि बारीकी से देखा जाए, तो रजनीश जी के अंग्रेजी ब्लोग में भी व्याकरण-वर्तनी की कई अशुद्धियां निकल आएंगी। मेट्रो के अधिकांश लोग वहां की स्थानीय भाषा और हिंदी बोलते हैं। इसलिए मेट्रो के लिए भी विज्ञापन-बिक्री के लिए हिंदी और स्थानीय भाषा अच्छे विकल्प हैं।

आप मुंबई को ले लीजिए, या कोलकाता को या फिर हैदराबाद-बैंगलूर को ही (दिल्ली की बात करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वहां हिंदी वैसे ही बोली जाती है)। इन सब बड़े शहरों में हिंदी इतनी अधिक समझी जाती है कि यदि कोई विज्ञापनकर्ता हिंदी में विज्ञापन बनाए तो बिक्री खूब बढ़ सकती है।

हमारे यहां की विज्ञापन कंपनियों में अभी अग्रेजी का बोलबाला है, इसलिए वे हिंदी में विज्ञापन के बारे में ज्यादा सोच नहीं पाते हैं। वहां के विज्ञापन लेखक सब अंग्रेजी ही ज्यादा जानते हैं।

पर यह स्थिति जल्द बदल रही है। आज ग्रामीण इलाकों में धनी लोगों की संख्या खूब बढ़ रही है, और सभी बड़ी कंपनियां - जैसे टीवी कंपनियां, ट्रैक्टर कंपनियां, मोटरसाइकिल कंपनियां, यहां तक कि कार कंपनियां भी - ग्रामीण प्रदेशों में अपना सामान बेचने के लिए होड़ लगा रही हैं। ग्रामीण लोगों तक हिंदी या स्थानीय भाषाओं के जरिए ही पहुंचा जा सकता है।

Hari Joshi
from Meerut
14 years ago

बालसुब्रमण्‍यम जी,

मैं अंग्रेजी का हिमायती नहीं हूं और कोशिश करता हूं कि अंग्रेजी के चिट्ठों पर हिंदी में प्रतिक्रिया दूं। मैं अंग्रेजी के खिलाफ झंडा लेकर खड़े होने वालों में से भी नहीं हूं। मेरे लिए अपने देश की प्रांतीय भाषाएं किसी भी किसी भी देश की भाषा से पहले हैं और मैं इस बात का हिमायती हूं कि हर हिंदी भाषी को कम से कम एक प्रांतीय भाषा भी जरूर सीखनी चाहिए। अगर प्राइमरी शिक्षा तक ये अनिवार्य हो जाए तो हिंदी का राजनीतिक विरोध भी थम जाएगा।

अब बात विज्ञापनों के हिंदी में या अंग्रेजी में होने की। धंधा करने वाले लोग चैरिटेबल काम नहीं करते। वह एक लगाकर दो या सौ कमाने की सोचते हैं और वह वर्ग मेरे से ज्‍यादा समझदार है। उसे मालूम है कि उसका टारगेट क्‍लाइंट कौन है। मान लीजिए कि अगर किसी को कंप्‍यूटर बेचना है तो उसे अपने टारगेट क्‍लाइंट का पता होना चाहिए और विज्ञापन में पैसा भी उसे ही ध्‍यान में रखकर खर्च करेगी। इसी तरह मर्सडीज या लक्‍जरी कार बेचने वाली कंपनी अपने ग्राहकों की मानसिकता को भांपकर ही प्रचार सामग्री तैयार कराएगी।

ये कंपनियां अपने प्रोडक्‍ट को कहां और किस वर्ग में बेचना है; उसी के लिहाज से अपनी रणनीति तय करती हैं। न इन्‍हें हिंदी से विरोध है न अंग्रेजी से मोह। इनके निर्णय भी स्‍थायी नहीं होते। आज हम आर्थिक प्रगति कर रहे हैं; छोटे शहरों में प्रगति की दर अच्‍छी है। गांव भी पहले की अपेक्षा संपन्‍न हुए हैं या शहरी हवा वहां भी पंहुच रही है तो कंपनियां उन लोगों की जुबान में कह रहीं हैं-क्‍या आइडिया है सर जी!

हरि जी आपकी बात बिलकुल वाजिब है। धंधा कमानेवाले एक पैसा लगाकर सौ कमाने की ही सोचते हैं। पर मेरा कहना यह है कि वे हिंदी के बल पर एक के पीछे दो सौ भी कमा सकते हैं। हिंदी में इतनी ताकत है। इस मामले में अपनी देशी कंपनियों के मुकाबले विदेशी कंपनियां ज्यादा होशियार हैं, वे देशी कंपनियों की तुलना में हिंदी का ज्यादा उपयोग कर रही हैं, क्योंकि उनकी सोच अंग्रजियत से ग्रसित नहीं है, जैसे कि हमारी कंपनियों की है।

विज्ञापन कंपनियों में भी हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों से पढ़-लिखकर आए लोग ही होते हैं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि हमारे यहां उच्च-शिक्षा संस्थानों में अंग्रेजी का वर्चस्व है। ऐसी संस्थाओं में पढ़े लोग हिंदी में क्या विज्ञापन लिखेंगे? होता यह है कि विज्ञापन पहले अंग्रेजी में तैयार किए जाते हैं, फिर उन्हें हिंदी आदि में डब किया जाता है या भद्दे तरीके से अनूदित कर दिया जाता है। इससे धंधे भी चमक नहीं पाते, और विज्ञापन भी अच्छे नहीं बन पाते। यह सब तब सुधरेगा जब बच्चों को शुरू से ही हिंदी में शिक्षण मिलना संभव होगा और वे हिंदी में पूर्ण अधिकार प्राप्त करेंगे। जो व्यक्ति किंटरगार्टन से लेकर उच्च शिक्षा तक हिंदी में पढ़ा हो, निश्चय ही उसकी हिंदी आजकल के विज्ञापनकारों की हिंदी से कहीं बेहतर होगी।

यह सब आजकल में नहीं होनेवाला है, इसके लिए लंबा आंदोलन छेड़ना पड़ेगा। हमारे देश की हर संस्था में सुधार दरकार है, ताकि उनमें हिंदी का सही तरह से उपयोग हो। इनमें शामिल हैं न्यायतंत्र, सरकारी दफ्तर, उच्च शिक्षा संस्थाएं, निजी व्यवसाय, आदि, आदि।

खुशी जी, पोस्ट कहाँ लिखी है ? अपने ब्लॉग पर ? यहाँ अपनी उस पोस्ट का लिंक दे देतीं तो अच्छा होता । इस वक्त के अच्छे मुद्दे को चुना है आपने ।

यह चर्चा इंडीब्लोगर में ही चल रही है। यह रही उसकी कड़ी -

एक जूता ... एक नेता

खुशी की चर्चा का लिंक देकर आपने अच्छा किया बालसुब्रमण्यम जी । अभी पहुँचते हैं वहाँ ।

अपने साथ कुछ अच्छे जोड़े जूते साथ ले जाना न भूलें Smile

खुलकर बोलनेवालों की वाणी थम क्यों गई?


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