स्वास्थ्य और योग-योगानन्द स्व
स्वास्थ्य क्या है? शरीर की तीन धातुओं वात, पित्त एवं कफ का साम्य ही स्वास्थ्य है जिसमें मन तथा शरीर के समस्त अवयव मेल व सामंजस्य से कार्य करते हैं। तब मनुष्य सुख व शान्ति का अनुभव करता है और निज जीवन के कर्त्तव्यों को सहज भव से सुविधानुसार निर्वहन करता है। ऐसे में मनुष्य की पाचन शक्ति ठीक रहती है, अच्छी भूख लगती है, श्वास व प्रश्वास एवं नाड़ी की गति सामान्य रहती है। रक्त भी शुद्ध एवं पर्याप्त मात्रा में रहता है, स्नायु पुष्ट रहते हैं, मन शान्त रहता है, शौच ठीक होता है, मूत्र सामान्य होता है, गालों पर लालिमा रहती है, चेहरा दमकता है, आंखें चमकती हैं। स्वस्थ मनुष्य नाचता-गाता, मुस्कराता-हंसता, तथा आनन्दविभोर होकर इधर-उधर घूमता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य ठीक चिन्तन कर सकता है, बोल सकता है तथा ठीक ढंग से कार्य कर सकता है। स्वस्थ शरीर व जीवन बहुत बड़ी उपलब्धि है।
मान लोकि मनुष्य अस्वस्थ है तो सारा धन व सम्पत्ति का भौतिक लाभ ही नहीं है। सब व्यर्थ है। सबकुछ होते हुए भी मनुष्य स्वस्थ न रहे तो उसका जीवन दयनीय हो जाता है।
विगत जन्म में किए सत्कर्मों के कारण ही मनुष्य को अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। जिसने सत्कर्म किए, दीन-दुःखियों की सेवा करी, उपासना, ध्यान, तथा योग किया वह इस जीवन में स्वास्थ्य के साथ-साथ अच्छा जीवन भोगता है।
आत्मसाक्षात्कार सर्वोत्कृष्ट है!
मनुष्य के लिए आत्मसाक्षात्कार सर्वोत्कृष्ट है। इस आत्मसाक्षात्कार से लाभ क्या है? इसके लिए प्रयत्न क्यों करें? एक मात्र आत्मज्ञान की प्राप्ति से ही जन्म-मृत्यु के चक्र से तथा उसके सहयोगी रोग, जरा, दुःख, कष्ट, विपत्ति, चिन्ता तथा नानाविध क्लेशों को समाप्त कर सकता है। आत्म ज्ञान से शाश्वत आनन्द, परम शान्ति, सर्वोत्कृष्ट ज्ञान तथा अमरत्व मिलता है।
कभी व्यक्ति सोचता है कि हमें क्यों स्वस्थ रहना चाहिए? मूलतः हमें धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के लिए स्वास्थ्य प्राप्त करना चाहिए। स्वास्थ्य के बिना कुछ भी प्राप्त करना सम्भव नहीं है। कहा जाता है कि पहला सुख नीरोगी काया। स्वास्थ्य के बिना तो प्रार्थना एवं ध्यान करना भी सम्भव नहीं है। स्वास्थ्य के बिना योग भी नहीं कर सकते अर्थात् आसन व प्राणायाम नहीं कर सकते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि संसार सागर को पार करने के लिए यह शरीर एक नौका के सदृश है। पुण्य कर्म करने तथा मोक्ष पाने के लिए भी यही शरीर साधन है।
कोई भी साधक योग-साधना तथा आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहता है तो उसे मनोरोग अर्थात् आधि तथा शारीरिक रोग अर्थात् व्याधि से मुक्त होना होगा। सभी रोगों का मूल मनोरोग है अर्थात् मन की अस्वस्थ अवस्था है।
ऋणात्मक विचार, घृणा, क्रोध, चिन्ता, विषाद आदि शारीरिक रोगों के लिए जिम्मेदार हैं। ये ही मन को क्षीण करते हैं और शरीर में रोग उत्पन्न करके कष्ट देते हैं।
योग से स्थूल शरीर का रूपान्तरण
योग से अन्नमय स्थूल शरीर का रूपान्तरण होता है। योग से शरीर के स्थूल एवं सूक्ष्म अवयवों को उनकी प्राकृतिक अवस्था में सक्रिय रखता है।
स्वास्थ्य का मूल मन्त्र यही है कि शरीर के अंग प्राकृतिक ढंग से कार्यशील करते रहें। कृत्रिम साधनों पर निर्भर स्वास्थ्य कदापि स्थिर नहीं रह सकता है। अधिक औषधि के सेवन से शरीर की प्राकृतिक सक्रियता जड़ से समाप्त हो जाती है।
योग की विभिन्न क्रियाओं आसन, प्राणायाम, तप, मुद्रा, बंध, षट्कर्म आदि के द्वारा रक्त, प्राण, नाड़ी ग्रन्थि आदि का शोधन किया जाता है। ऐसे में विकारों और व्याधियों को जन्म देने वाले समस्त मल शरीर से पलायन कर जाते हैं।
योग के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए जिसके लिए स्वास्थ्य के नियमों का सख्ती के साथ पालन करना चाहिए। पौष्टिक, हल्का, तत्त्वपूर्ण, सुपाच्य, पोषक, सात्त्िवक आहार लेने, शुद्ध वायु के सेवन करने, नियमित शारीरिक व्यायाम का अभ्यास करने, शीतल जल से स्नान करने, खान-पान में मितता बरतने से शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
जप, ध्यान, ब्रह्मचर्य, यम-नियम के अभ्यास, सच्चरित्र, सद् विचार, सद्भाव, सद्भाषण, सत्कर्म, आत्मविचार, विचार का परिवर्तन, मन से सौम्य विचारों का चिन्तन, मनोरंजन, मुदिता के अभ्यास से मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है और उसे बनाए रखा जा सकता है।
योग स्वास्थ्य का पूरक है। योग से शरीर स्वस्थ रहता है और मन स्थिर रहता है। शरीर रोग रहित रहता है और जीवन सार्थक लगने लगता है। जब व्यक्ति जीवन में नियमों को नियमित ढंग से पालन करता है तब वह सुख-शान्ति व सफलता पाता है और उसक अपना जीवन संसार सागर पार करने के लिए एक माध्यम लगने लगता है। सारे सुख दिलाता है। अतः स्वस्थ जीवन के लिए योग का अनुसरण करें।(मेरे द्वारा सम्पादित ज्योतिष निकेतन सन्देश अंक ६४ से साभार। सदस्य बनने या नमूना प्रति प्राप्त करने के लिए अपना पता मेरे ईमेल पर भेजें ताजा अंक प्रेषित कर दिया जाएगा।)
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