जीना हर साँस सौ वर्षों जैसे, बचा रखना थोड़ी सी भूख

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होते हैं बन्द कपाट खुलने के लिये पुन: आस्थायें अमर उद्यत होती हैं पुन: पुन: वीर लड़ते ही रहते मरते

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Girijesh Rao

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