जानती हूँ , मैं तेरी कुछ नहीं लगती

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मैं सुलगती रही गीली लकड़ी की तरह (उठता रहा धुंआ धीरे धीरे...) तेरी आँखों में मगर आँसू सा कुछ उतरा ही नह

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