वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है..

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कुछ गीत ऐसे होते हैं जो जीवन के किसी काल खंड में यूँ रचे बसे होते हैं कि उन्हें गुनगुनाते ही स्मृतियाँ एक चलचित्र की भांति जेहन में उभर उठती हैं। वो शाम कुछ अजीब थी.. मेरे लिए एक ऐसा ही नग्मा है। एक तो शामें मुझे यूँ भी प्यारी रही हैं और उनमें ढले इन रूमानियत भरे बोलों को सुनकर मन उन दिनों खो सा जाता था।

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Manish Kumar

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