पुनर्मूषको भव – किन्तु न शक्यं तत्कर्तुम् (विवशता अपराधी के मुठभेड़ की)

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एक नीतिकथा है जिसमें एक चूहे पर कृपाकर महात्माजी मंत्रबल से क्रमशः बिल्ली, कुत्ता, अंत में बाघ बनाते हैं जो उन्हीं पर आक्रमण करने की सोचता है। महात्माजी उसे फिर से चूहा बना देते हैं। कथा का संदेश है कि अयोग्य पात्र को अनुचित कामों से रोका जाना चाहिए। हमारी शासकीय व्यवस्था में अपराधी हो बढ़ावा मिलता हैः जब वह खतरनाक हो जाता है तो उसका मुठभेड़ कर दिया जाता है।

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Yogendra Joshi

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