कभी तेरे आंचल को, होले से छू कर तेरी काली लटों से, मैं खेलूं यूं हंसकर देखो जो मुड़कर, मैं दिखती कहां हूं हवा हूँ हवा हूँ, बसन्ती हवा हूँ
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