रास्ते बहोत थे, वास्ते बहोत,

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रास्ते बहोत थे, वास्ते बहोत थे, फिर भी आज हम अकेले खड़े हैं, ज़िंदा हैं के बस अपनी ज़िद पे अड़े हैं

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Neeraj Kumar

blogs from Bokaro Steel City

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