ईमान बिकते हैं

जब से दिलों की गलियों में ईमान बिकते हैं,हां तब से राहे-इश्क़ बियाबान लगते हैं। ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं। साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं। दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं। हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं। ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं । लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चंद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं। सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं। इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते

Replies 1 to 3 of 3 Descending
Gouri
Gouri
from Hyderabad
13 years ago

Irshad! Irshad!Laughing

Mag[m]
from Delhi
13 years ago

hey gauri.... after poem irshad irshad...... gud yaar

Addy
Addy
from Mumbai
13 years ago

Another!

Mag[m]
Mag[m]
from Delhi
13 years ago

hey sanjay i told u dear its not a place for blog or post promotion... use indivine for this.... well nice poem


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